मंगलवार, 16 मार्च 2010

नव संवत्सर क्यों नहीं मानते...!!










ग्रेगेरियन कैलेण्डर का आखिरी महिना आते ही पूरे विश्व में जहां-जहां पर अंग्रेजों का आधिपत्य रहा है, वे सारे देश नए साल की आगुवानी करने के लिए तैयारियां करने लगते हैं. हैप्पी न्यू इयर के झंडे, बैनर, पोस्टर और कार्डों के साथ दारू की दुकानों की भी चांदी कटने  लगती है. कहीं-कहीं तो जाम से जाम इतने टकराते हैं कि घटनाएं दुर्घटनाओं में बदल जाति हैं और आदमी आदमी से और गाड़ियां गाड़ियों से भिड़ने लगती हैं. रातभर जागकर नया साल ऐसे मनाया जाता है मानो पूरे साल की खुशियाँ एक साथ आज ही मिल जाएंगी. सभ्यता और संस्कृति की दुहाई देने वाले हम भारतीय पश्चिमी शराबी तहज़ीब में इस कदर सराबोर हो जाते हैं कि उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सारी कथित मर्यादाओं की की तिलांजलि दे देते हैं. पता ही नहीं लगता कि कौन अपना है और कौन पराया. नव संवत्सर को हम भारतीय लगभग भूल ही चुके है. इसके बारे में जानने वालों को अंगुली पर गिना जा सकता है.
जबकि ग्रेगेरियन कैलेण्डर को जानने वालों की संख्या अनगिनत है. अपनी समृद्ध सांस्कृतिक ओ ऐतिहासिक परम्पराओं को भूलकर वर्तमान में ' भारत ' वास्तव में ' इंडिया ' में  तब्दील होता जा रहा है. हमें अंग्रेजी नया साल मानाने में जितना अभिमान होता है उसका रत्तीभर भी गर्व भारतीय नव संवत्सर को जानने या मानाने में नहीं होता. अपने आप से ये सवाल पूछें कि हम भारतीय नव संवत्सर क्यों नहीं मानते ?

ग्रेगेरियन कैलेण्डर की शुरूआत
१ जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को ईस्वीं सन के नाम से जानते हैं जिसका संबंध ईसाई जगत व ईसा मसीह से है. इसे रोम के सम्राट जूलियस सीज़र द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया. भारत में ईस्वीं संवत की शुरूआत अंग्रेजी शासकों ने १७५२ में किया. अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अंग्रेजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे विश्व के अनेक देशों ने अपनाया. १७५२ से पहले ईस्वीं सन २५ मार्च से शुरू होता था, किन्तु १८ वीं सदी से इसकी शुरूआत १ जनवरी से होने लगी. ईस्वीं कैलेण्डर के महीनों के नामों  में प्रथम छह माह यानी जनवरी से जून रोमन देवताओं ( जोनस, मार्स व  मया आदि ) के नाम पर हैं. जुलाई और अगस्त रोम के सम्राट जूलियस सीज़र तथा उनके पौत्र आगस्टस के नाम पर तथा सितम्बर से दिसंबर तक रोमन संवत के मासों के आधार पर रखे गए. जुलाई और अगस्त, क्योंकि सम्राटों के नाम पर थे इसलिए, दोनों ही इकत्तीस दिनों के माने गए अन्यथा कोई भी दो मास ३१ दिनों या लगातार बराबर दिनों की संख्या वाले नहीं हैं.
ईसा से ७५३ वर्ष पूर्व रोमन नगर की स्थापना के समय रोमन संवत प्रारंभ हुआ जिसके मात्र दस माह ३०४ दिन होते थे. इसके ५३ साल बाद वहां के सम्राट नूमा पाम्पीसियस ने जनवरी और फरवरी दो माह और जोड़कर इसे ३५५ दिनों का बना दिया. ईसा के जन्म से ४६ वर्ष पहले जूलियस सीज़र ने इसे ३६५ दिन का बना दिया. सन १५८२ में पोप ग्रेगरी ने आदेश जारी किया कि इस मास के ०४ अक्टूबर को इस वर्ष का १४ अक्टूबर समझा जाए. आखिर क्या आधार है इस काल गणना का ? यह तो ग्रहों व नक्षत्रों की स्थिति पर आधारित होनी चाहिए.
ग्रेगेरियन कैलेण्डर की काल गणना मात्र दो हज़ार वर्षों के अति अल्प समय को दर्शाती है. जबकि यूनान की काल गणना ३५७९ वर्ष, रोम की २७५६ वर्ष, यहूदी की काल गणना ५७६७ वर्ष, मिस्र की २८६७० वर्ष, पारसी १८९९७४ वर्ष तथा चीन की ९६००२३०४ वर्ष पुरानी है. इन सबसे अलग यासी भारतीय काल गणना की बात करे तो हमारे ज्योतिष अनुसार पृथ्वी की आयु १ अरब ९७ करोड़, ३९ लाख ४९ हज़ार १०८ वर्ष है, जिसके व्यापक प्रमाण भारत के पास मौजूद है.

विक्रम संवत की शुरूआत
' चैत्रे मासि जगद ब्रह्मा ससर्ज प्रथमे अहनि, शुक्ल पक्षे समग्रेतु तदा सूर्योदये सति.'- ब्रह्म पुराण में वर्णित इस श्लोक के मुताबिक चैत्र मास के प्रथम दिन प्रथम सूर्योदय पर ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी. इसी दिन से  विक्रम संवत की शुरूआत होती है. ग्रेगेरियन कैलेण्डर से अलग देश में कई संवत प्रचलित हैं. फिलहाल, विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी संवत, बौद्ध और जैन संवत तेलगू संवत प्रचलित हैं. इनमें हर एक का अपना नया साल होता है. विक्रम संवत को सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की ख़ुशी में ५७ ईसा पूर्व में शुरू किया था. विक्रम संवत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है. भारतीय पंचांग और काल निर्धारण का आधार विक्रम संवत है.

विशेषता 
विक्रम संवत का संबंध विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत और ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है. इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना और राष्ट्र गौरवशाली परम्पराओं को दर्शाती है. यही नहीं, ब्रह्माण्ड के सबसे पुरातन ग्रन्थ वेदों में भी इसका वर्णन है. नव संवत्सर यानि संवत्सरों का वर्णन यजुर्वेद के २७ वें और ३० वें अध्याय के मन्त्र क्रमांक क्रमशः ४५ और १५ में विस्तार से दिया गया है. विश्व में सौर मंडल के ग्रहों और नक्षत्रों की चाल और निरंतर बदलती उनकी स्थिति पर ही हमारे दिन, महीने, साल और उनके सूक्ष्मतम भाग आधारित होते.

राष्ट्रीय कैलेण्डर
देश आज़ाद होने के बाद नवम्बर १९५२ में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद् के द्वारा पंचांग सुधर समिति की स्थापना की गई. समिति ने १९५५ में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी. लेकिन, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलेण्डर को ही सरकारी कामकाज हेतु उपयुक्त मानकर २२ मार्च १९५७ को इसे राष्ट्रीय कैलेण्डर के रूप में स्वीकार किया गया.

ऐतिहासिक-पौराणिक महत्व 
1. आज से १ अरब ९७ करोड़, ३९ लाख ४९ हज़ार १०९ वर्ष पहले इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का सृजन किया था.
2. लंका में राक्षसों का मर्दन कर अयोध्या लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम राम का राज्याभिषेक इसी दिन किया गया.
3. शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है. भगवान राम के जन्म दिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मानाने का प्रथम दिन.
4. समाज को अच्छे मार्ग पर ले जाने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज के स्थापना दिवस के रूप में चुना.
5. सिख परम्परा के  द्वितीय गुरू का जन्म दिवस.
6. सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज सुधारक रक्षक वरुनावातार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए.
7.शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों  को परस्त कर दक्षिण में श्रेष्ठतम राज्य की स्थापना करने के लिए यही दिन चुना.
8. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन ५११२ वर्ष पूर्व युधिस्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ.
9. इसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा. केशवराम बलिराम हेडगेवार का जन्म दिवस है.  

प्राकृतिक महत्व
1. वसंत ऋतु का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से शुरू होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चरों तरफ़ पुष्पों की सुगंध से भरी होती है.
2. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है.
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में राहते हैं अर्थात किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए शुभ मुहूर्त होता है.
क्या ग्रेगेरियन कैलेण्डर के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम जाग सके, स्वाभिमान जाग सके या श्रेष्ठ होने का भाव जाग सके ? आइए गर्व के साथ भारतीय नव वर्ष यानी कि विक्रमी संवत ( २०६७ ) को पूरा जोशो-खरोश के साथ मनाएं और सभी लोगों को इसके बारे में बताएं.
                                     (स्रोत: पंजाब केसरी. शुक्रवार्ता, १ जनवरी, २०१० और दैनिक जागरण, १५ मार्च, २०१०)
नव संवत का नूतन स्वर, नव सूर्योदय की प्रथम किरण.
सृजित करे आप सबमें, दया, शीलता, क्षमा, प्रेम और कर्मठता.
समृद्ध शसक्त परिवार, समाज  और देश का निर्माण करें
आओ मिलकर नव संवत को नूतन स्वर प्रदान करें...!! 

जय हिंद !
प्रबल प्रताप सिंह

 

10 टिप्‍पणियां:

  1. भारतीय नववर्ष आपको मुबारक हो.
    thanks.
    WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM

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  2. हमारा जीवन और जीवन शैली अब बाज़ार से नियंत्रित हो चली हैं।

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  3. sir , aapne bahut acchi jaankari di hai ... meri badhayi sweekar kariye ...

    aabhar aapka

    vijay

    www.poemsofvijay.blogspot.com

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  4. ज्‍योतिष पर पढ़ा पं. हजारी प्रसाद ि‍द्ववेदी का निबंध याद आया. अच्‍छा लगा. हितेन्‍द्र जी से होकर बरास्‍ते ब्‍लागर्स एसोसिएशन यहां तक पहुंचा.

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  5. Very -very impressive topic


    maine to aaj hi reard kiya

    bahut achha laga


    Jai hind Jai Bharat !!!!!

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