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मंगलवार, 24 मार्च 2009

ग़ज़ल

ग़ज़ल
समझो अवाम की हुंकार को
हर हाथ न उठा ले एक दिन तलवार को.
ऐसी उदासीनता बरदास्त नहीं अब हमको
बदलो वरना बदल डालेगी जनता सरकार को.

सत्ता पर बिठाया है तुमको किसलिए
मरें मासूम और तुम सजाओ दरबार को.

सुर्खियों में जो रहने को लालायित रहते हो
जनता लिखेगी एक असली समाचार को.
सुधर जाओ सियासतदारों तुम्हें आखिरी मौका देते हैं
वरना हम अवाम हैं बदल देंगे सियासत के आधार को
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