कुछ दिन पहले टीवी चैनलों पर अक्षय कुमार द्वारा पैंट की बटन खोलने का मामला जोर-शोर से दिखया गया। एक फैशन शो में अक्षय कुमार को अपनी पत्नी द्वारा पैंट का बटन खोलते सभी प्रमुख चैनलों ने दिखाया। उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने पदमश्री कि गरिमा को धूमिल किया है। अश्लीलता का खुलेआम प्रदर्शन का आरोप लगा अक्षय कुमार और उनकी पत्नी ट्विंकल खन्ना पर मुक़दमा भी दर्ज कर दिया गया। पुलिस वाले अक्की के पीछे हाथ धो के पड़ गए कि कब उन्हे गिरफ्तार कर सलाखों में कैद करे। वो तो अक्की कि किस्मत अच्छी थी कि पुली के हत्थे नहीं आए। जब उन्हें इसकी ख़बर मिली तो उन्होंने अपनी कृत्य के लिए सबसे यह कहते हुए माफ़ी मांग ली कि मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं था।
मुझे यह समझ में नहीं आता कि अक्षय ने किस तरह की अश्लीलता का प्रदर्शन किया , किसके खिलाफ अश्लील प्रदर्शन किया...? यह बात हम सभी जानते हैं की फैशन शो में मॉडल्स बढ़-चढ़कर अंग प्रदर्शन करते हैं। डिजायनर कपड़ों के साथ-साथ मॉडल्स अपने अंगों का भी प्रदर्शन करते हैं। मॉडल्स अपने शरीर को सुगठित व् सुडौल बनने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाते हैं। यही हाल फिल्मी दुनिया के कलाकारों का भी है।
अश्लीलता की परिभाषा के बारे में कोई भी विद्वान एक मत नहीं है। यदि अक्षय कुमार ने वास्तव में अश्लीलता में का प्रदर्शन किया है तो वे सज़ा के अकेले हक़दार नहीं हैं। अश्लील प्रदर्शन के लिए फिल्मी दुनिया से लेकर राजनीति की दुनिया के सियासतबाज भी सज़ा के हक़दार हैं।
पिछले ६२ सालों से गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, आरक्षण, जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद, और बेरोज़गारी के बल पर सभी राजनीतिक दल के नेता जनता से अश्लीलता की लड़ाई लड़ रहे हैं। लोकतंत्र के मन्दिर तक को राजनेताओं ने अपने अश्लील प्रदर्शन से दूषित कर दिया है। पुलिस प्रशासन ऐसे अश्लील प्रदर्शनकारियों पर चुप्पी क्यों साधे है? जिनके कन्धों पर लोकतंत्र और लोक की रक्षा और सुरक्षा की जिम्मेदारी है।
मैं उन श्लीलता के ठेकेदारों से पूछता हूँ कि अक्षय कुमार ने जो अश्लील प्रदर्शन किया है उससे किसे आर्थिक और सामाजिक क्षति पहुंची है। शायद किसी को नही। क्योंकि उनका यह प्रोफेसन है। लेकिन जिनका प्रोफेसन लोकतंत्र के आधार को मज़बूत करना हो, जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करना हो, विकासशील भारत को विकसित बनाना हो वो अपना प्रोफेसन छोड़ एक-दुसरे पर छीटाकशीं करते हैं। संसद की कार्यवाही में अश्लीलता का प्रदर्शन कर बाधा पहुंचाते हैं। जनता की गाढ़ी कमाई को ये राजनेता तुच्छ अश्लील प्रदेशन में व्यय कर देते हैं। इनके खिलाफ कानून के पास कोई सज़ा नहीं है?
भारतीय कानून सभी को सामान दृष्टि से देखने का दावा करता है, तो उसकी नज़र सिर्फ़ अक्षय कुमार और उनकी पत्नी पर ही क्यों पड़ी? पिछले ६२ सालों से जो राजनेता जनता और जनतंत्र से अश्लीलता की लड़ाई लड़ रहे हैं ऐसे लोगों पर भारतीय कानून आंखों पर काली पट्टी क्यों बांधे है? क्या कानून की नज़र में जनता से अशिक्षा, गरीबी, बेरोज़गारी, जातिवाद, क्षेत्रवाद, धर्मवाद, आरक्षण और भ्रष्टाचार का हथकंडा अपनाकर अश्लीलता की लड़ाई करने वाले राजनेता दोषी नहीं हैं?