शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

लोहड़ी यानी प्रकृति, फसल, रिश्तों में प्रेम, सद्भाव और भाईचारा का उत्सव

लोहड़ी यानी प्रकृति,फसल, रिश्तों में प्रेम, सद्भाव और भाईचारा का उत्सव

लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति (14) जनवरी के एक दिन पहले मनाया जाता है। लोहड़ी के बारे में अनेक कथाएं लोक में प्रचलित हैं। उत्तर भारत में इसे बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। कुछ लोग इस पर्व को रबी की  फसल के पकने के लिए सूर्य देव की आराधाना से जोड़ते हैं। कुछ लोग ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को इसे मनाने का आधार मानते हैं। ग्लोबल विलेज के दौर में लोहड़ी पर्व भी विस्तृत रूप धारण कर चुका है। 

लोहड़ी क्यों और कैसे मनाते हैं, इसके बारे में जानते हैं...

  • लोहड़ी शीतकालीन संक्रांति के बाद लंबे दिनों के आगमन का उत्सव है । लोककथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में लोहड़ी पारंपरिक महीने के अंत में मनाई जाती थी, जब शीतकालीन संक्रांति होती है। जैसे-जैसे सूर्य अपनी उत्तर दिशा की यात्रा पर आगे बढ़ता है, वैसे-वैसे यह दिन बड़े होने का जश्न मनाता है।
  • लोहड़ी रिश्तों की मधुरता, सुकून और प्रेम का प्रतीक है। दुखों का नाश, प्यार और भाईचारे से मिलजुल कर नफरत के बीज का नाश करने का नाम है लोहड़ी। लोहड़ी की रात परिवार और सगे-सबंधियों के साथ मिल बैठ कर हंसी-मजाक, नाच-गाना कर रिश्तों में मिठास भरने, सद्‍भावना से रहने का संदेश देती है।
  • लोहड़ी तीन अक्षरों से मिलकर बना है, ल का अर्थ है लकड़ी, ओह का अर्थ है उपला और ड़ी का अर्थ रेवड़ी से है। इन तीनों के द्वारा लोहड़ी की अग्नि जलाई जाती है।  इस पर्व के 20-25 दिन पहले ही बच्चे 'लोहड़ी' के लोकगीत गा-गाकर लकड़ी और उपले इकट्ठे करते हैं। लोहड़ीलोहड़ी मनाने के लिए लकड़ियों की ढेरी पर सूखे उपले भी रखे जाते हैं। समूह के साथ लोहड़ी पूजन करने के बाद उसमें तिल, गुड़, रेवड़ी एवं मूंगफली का भोग लगाया जाता है। इस अवसर पर ढोल की थाप के साथ गिद्दा और भांगड़ा नृत्य विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं
  • लोहड़ी के दिन लोग अपने घरों के सामने अग्नि जलाते हैं। लोहड़ी के त्योहार को यादगार बनाने और इसमें मिठास घोलने के लिए कई तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं। लोहड़ी में गुड़ और मूंगफली की चिक्की, मकई का लावा , तिल और गजक जैसे कई मिष्ठान बनाए, चढ़ाए और लोगों में बांटे जाते हैं।
  • जनवरी (January) के महीने में लोहड़ी (Lohri) पूरे देश में मनाई जाएगी। लोहड़ी एक फसल त्योहार है जो सर्दियों के अंत का प्रतीक है। जब पंजाब में रबी की फसल (Rabi Fasal) की कटाई होती है तब लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। भारत के दूसरे राज्य में लोहड़ी को मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के नाम से भी मनाया जाता है।
  • यह पर्व कृषि व प्रकृति को समर्पित होता है. इस दिन किसान अपनी नई फसलों को अग्नि में समर्पित करते हैं और भगवान सूर्यदेव को धन्यवाद अर्पित करते हैं. लोहड़ी का पर्व सुख-समृद्धि व खुशियों का प्रतीक है.

लोहड़ी के बारे में प्रचलित कहानियां

  •  पुराणों के आधार पर इसे सती के त्याग के रूप में प्रतिवर्ष याद करके मनाया जाता हैं. कथानुसार जब प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती के पति महादेव शिव का तिरस्कार किया था और अपने जामाता को यज्ञ में शामिल ना करने से उनकी पुत्री ने अपनी आपको को अग्नि में समर्पित कर दिया था.
  •  पारंपरिक तौर पर लोहड़ी का यह त्योहार फसल की कटाई और नई फसल की बुआई के साथ जुड़ा हुआ है। लोहड़ी की आग में रेवड़ी, मूंगफली, रवि की फसल के तौर पर तिल, गुड़ आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। मान्यता है कि इस तरह सिख समुदाय सूर्य देव और अग्नि देव का आभार व्यक्त करते हैं। 
  •  मान्यताओं के अनुसार, इस तरह सूर्य देव व अग्नि देव के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है कि उनकी कृपा से फसल अच्छी होती है और आनी वाली फसल में कोई समस्या न हो। साथ ही यह त्योहार परिवार में आने वाले नए मेहमान जैसे नई बहू, बच्चा या फिर हर साल होने वाली फसल के स्वागत के लिए मनाया जाता है।
  •  कुछ मान्यताओं के अनुसार, लोहड़ी को होलिका की बहन माना जाता है, जो भक्त प्रह्लाद के साथ आग से बच गई थी, जबकि अन्य मान्यताएं यह भी कहती हैं कि त्योहार का नाम संत कबीर की पत्नी लोई के नाम पर रखा गया था । इसीलिए लोग हर साल लोहड़ी उत्सव को चिह्नित करने के लिए अलाव जलाते हैं।
  •  अकबर के समय में दुल्ला भट्टी पंजाब प्रान्त का सरदार था. उसे पता चला की संदलबार (वर्तमान पाकिस्तान) में लड़कियों की बाजारी होती है. तब दुल्ला ने इस का विरोध किया और लड़कियों को दुष्कर्म से बचाया कर उनकी शादी करवा दी. इस विजय के दिन के कारण भी लोग लोहड़ी का पर्व मनाते हैं।
  •  एक अन्य कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है।

सिख समुदाय इसे खास तरीके से मनाता है...

 पंजाबी समाज में इस पर्व की तैयारी कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इसका संबंध मन्नत से जोड़ा गया है अर्थात जिस घर में नई बहू आई होती है या घर में संतान का जन्म हुआ होता है, तो उस परिवार की ओर से खुशी बांटते हुए लोहड़ी मनाई जाती है।



लाेहड़ी पर गाए जाने वाले गीत

सुंदर मुंदरिये...हो

तेरा कौन बेचारा, ...हो
दुल्ला भट्टी वाला, ...हो
दुल्ले घी व्याही,...हो
सेर शक्कर आई, ...हो
कुड़ी दे बाझे पाई, ...हो
कुड़ी दा लाल पटारा, ...हो
कुड़ी दा सालू पाटा ...हो
सालू कौन समेटे ...हो
चाचा चुर्री कुट्टी ...हो
जमींदारा लुट्टी ...हो
ज़मींदार सुधाये ...हो
गिण गिण पौले लाऊ...हो
इक पौला घट गया...हो
जिमेंदार नट्ठ गया...हो

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अंबियां पे अंबिया… अंबियां
लाल कणकां जमियां… अंबियां
कणकां बिच्च मुटेरे... अंबियां
दो साधू केरे...अंबियां
साधू गे कायो...अंबियां
का औया थोड़ा...अंबियां
अग्गैं मिल्ला घोड़ा...अंबियां
घोड़े उप्पर काठी...अंबियां
अग्गैं मिल्ला हाथी...अंबियां
हाथियैं फिचके दांद
मेरा नाम गोपीचंद

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दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी , दे माई पाथी तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी
हुल्ले नी माइ हुल्ले
दो बेरी पत्ता झुल्ले
दो झुल्ल पयीं खजूर्राँ
खजूराँ सुट्ट्या मेवा
एस मुंडे कर मगेवा
मुंडे दी वोटी निक्कदी
ओ खान्दी चूरी कुटदी
कुट कुट भरया थाल
वोटी बावे ननदना नाल

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असी गंगा चल्ले - शावा !
सस सौरा चल्ले - शावा !
जेठ जेठाणी चल्ले - शावा !
देयोर दराणी चल्ले - शावा !
पियारी शौक़ण चल्ली - शावा !
असी गंगा न्हाते - शावा !
सस सौरा न्हाते - शावा !
जेठ जठाणी न्हाते - शावा !
देयोर दराणी न्हाते - शावा !
पियारी शौक़ण न्हाती - शावा !
शौक़ण पैली पौड़ी - शावा !
शौक़ण दूजी पौड़ी - शावा !
शौक़ण तीजी पौड़ी - शावा !
मैं ते धिक्का दित्ता - शावा !
शौक़ण विच्चे रूड़ गई - शावा !
सस सौरा रोण - शावा !
जेठ जठाणी रोण - शावा !
देयोर दराणी रोण - शावा !
पियारा ओ वी रोवे - शावा !

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 आया लोहड़ी दा त्योहार , हो आया …खुशियां खूब मनाओ यार , नच्चो -गावो वंडो प्यार , मुड़ -मुड़ आवे ऐसा वार कि आया लोहड़ी दा त्योहार . हो आया … मुंडा वोटी लैके आया , सोणी वोटी लैके आया , खुशियां खूब मनाओ यार , नच्चो – गावो वंडो प्यार , कि आया लोहड़ी दा त्योहार, हो आया … कुड़ी नूँ मस्त दूल्हा मिलया, सोणा -सोणा दूल्हा मिलया , खुशियाँ खूब मनाओ यार , नच्चो गावो वंडो प्यार , कि आया लोहड़ी दा त्योहार ,हो आया … मुंडा – कुड़ी सदा सुख पावन , तरक्की करन ते वधते जावन , जल्दी सोणा पुत्तर आवे ।