बुधवार, 9 दिसंबर 2009


ये तस्वीरें कुछ कहती हैं....!!



असंतुष्ट और धोखा खाए छात्र - छात्राओं के लिए नया बैच, आइए आप भी यहाँ धोखा खाइए.




आपको चैन न मिल रहा हो तो यहाँ आकर अपना चैन ठीक करा सकते हैं. जैसा कि ये फोटो कह रही है.


प्रबल प्रताप सिंह

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

कोपेनहेगन क्या होपेनहेगन बन पाएगा....?


















































































दिन सोमवार तारीख सात है आज. डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में दुनियाभर  के पर्यावरण प्रेमियों का जमावड़ा लगा है. सात से अट्ठारह दिसम्बर तक जलवायु में बढ़ते जहर को कम करने की योजना - परियोजना पर चर्चा होगी. तापमान बढ़ने से पिघलते ग्लेशियरों का पानी समुद्र में समा रहा है. नतीजतन विश्व के तमाम देशों के कई तटीय शहरों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है. कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं नियमित अंतराल पर सामने आ रहीं हैं. परिणामस्वरूप निर्दोष जिन्दगियां काल के गाल में समा रहींहैं. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा १९९२ में रियो दी जिनेरियो ( ब्राज़ील ) में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन की यह सबसे अद्यतन और महत्वपूर्ण कड़ी है. खबर है की जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता होना तय हुआ है. यह समझौता क्या होगा ? कैसा होगा ? पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में कितना कारगर होगा ?  यह  सम्मेलन की समाप्ति के बाद पता चलेगा.





























जलवायु परिवर्तन मतलब लम्बी समयावधि के बाद तापक्रम में बदलाव. मनुष्य की विलासितापूर्ण जीवनशैली, उद्योग व वाहनों से निकलने वाला धुंआ और घटतेय वन्य क्षेत्र के कारण ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव बढ़ रहा है. इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और जलवाष्प शामिल हैं. कभी पृथ्वी की उत्पत्ति में सहायक रहीं ये गैसें अब इसके तापमान में खतरनाक तरीके से बढ़ोत्तरी कर रहीहैं.













 जलवायु परिवर्तन संधि पर १९२ देशों के हस्ताक्षर हैं. इन १९२ देशों और सरकारों के मुखिया के साथ - साथ तीस हजार लोगों को आमंत्रित  किया गया है. लेकिन पन्द्रह हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था होने के कारण कम लोगों के आने की सम्भावना है. इस सम्मलेन का एजेंडा यह है कि इसमें विकसित और औद्योगिक देश २०२० तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती लाने की घोषणा करें तथा विकासशील और गरीब देशों को इन खतरों से निपटने के लिए आर्थिक और तकनीकी मदद देने का ऐलान करें. बाद में इस समझौते को २०१० में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि का रूप दिया जाएगा, जिसके चलते इसके प्रावधानों को मानने की बाध्यता होगी.









भारत और चीन जैसे विकासशील देश का मानना है कि कार्बन उत्सर्जन में स्पष्ट कटौती की जिम्मेदारी औद्योगिक और धनाड्य देशों की है. क्योंकि काफी लम्बे अर्से से ये देश ज्यादा मात्रा में जलवायु को क्षति पहुंचा रहे हैं. इन देशों को पहले कटौती कर उदहारण पेश करें. गौरतलब है कि १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने पांच फीसदी कटौती को अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर देने वाला बताया था.
कौन कितना कार्बन कटौती करेगा















भारत - २०५० तक - २० से २५%
चीन - २०२० तक - ४० से ४५%
अमेरिका - २०२० तक - १५%
ब्राज़ील - २०२० तक - ३६%
योरोप - २०२० तक - २० से ३०%
इंडोनेशिया - २०२० तक - २६%








विगत दिनों दिल्ली बेमौसम के कोहरे में घिरी दिनभर धुंध छाई रही. महाराष्ट्र और गुजरात में समुद्री तूफ़ान आने की खबर सुनाई दी. पूरे देश में इस साल सूखा पसर गया, अचानक बारिश शुरू हो गयी. मौसम की आख-मिचौली से आम आदमी हैरान और परेशान है. मौसम विज्ञानी भी इस तरह की अप्रत्याशित घटनाओं से चिंतित हैं. औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप धरती के वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड और एनी जहरीली गैसों की मात्रा दिनों-दिन बढती जा रही है, जिसके कारण धरती के तापमान में अप्रत्याशित तरीके से बढ़ोत्तरी हो रही है.
कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन देशों  में( प्रति व्यक्ति, टन में )












अमेरिका - २६.६
योरोपीय दश - ९.४०
जापान - १३
चीन - ४.७
रूस - १०
भारत - १
पर्यावरण को प्रदूषित करती गैसें( प्रतिशत में )
कार्बन डाई ऑक्साइड - ५८%
(जैविक ईंधन)
कार्बन डाई ऑक्साइड - १६%
(वन विनाश)
मीथेन - १७%
नाइट्रस ऑक्साइड - ८%
पर्यावरण परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की सलाहकार परिषद् के बनने और पर्यावरण परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना यानी एनएपीसीसी के गठन के साथ यह स्पष्ट कर दिया कि भारत जलवायु परिवर्तन पर प्रगतिशील कदम उठाने को कमर कसके तैयार है. 









एनएपीसीसी के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र पचौरी का मानना है कि कई बरसों की कोशिश के बाद जिस रास्ते की सहमति बनी है वह आगे जरूर बढ़ेगी.










कोपेनहेगन सम्मलेन के बारे में भारत के पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयराम रमेश का कहना है, " हमें बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए. ऐसा लगता है कि किसी अंतर्राष्ट्रीय समझौते पर पहुँचने से पहले लंबा समय लगेगा. यदि कोपेनहेगन में सिर्फ राजनीतिक लफ्फाजी होती है तो २०१० तक वेट करना पड़ेगा. " .
ग्रीनहाउस पैदा करने वाले क्षेत्र 





पावर स्टेशन ---------------------------------२१.३
औद्योगिक इकाई ----------------------१६.८
परिवहन ----------------------------१४.०
कृषि बाईप्रोडक्ट-----------------१२.५
जैविक ईंधन ---------------११.३
व्यपारिक स्रोत-----------१०.०
जल शोधन व कूड़ा निस्तारण ----३.४
बायोमास --------०








एक लीटर पेट्रोल के इस्तेमाल से पर्यावरण में चार किग्रा. कार्बन डाई ऑक्साइड पहुंचती है.
फिलिपीन्स लगातार तीन भीषण तूफानों से लगभग पूरी तरह तबाह हो चुका है. यही हाल ताइवान, वियतनाम और कम्बोडिया का भी है. फयां, अलनीनो, रीटा और कटरीना जैसे तूफानी जलजलों ने विश्व के कई देशों के शहरों को नुक्सान पहुंचाया है.











































 औद्योगिक युग (१७५०) के बाद ग्रीनहाउस गैसों में ९७% की वृद्धि हो गई है. ग्रीनहाउस गैसों के कारण धरती का तापमान १.५ डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. ग्लेशियर १.५ की प्रतिवर्ष की रफ्तार से पिघल रहे हैं.














धरती गर्म हो रही है. इसे बचाने के लिए कोपेनहेगन में चल रही बैठक से क्या होपेनहेगन का उद्देश्य कामयाब होगा? विकसित और औद्योगिक देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भरी कटौती करने को तैयार होंगे?  हम उम्मीद करते हैं की इन सवालों के जवाब हमें सम्मेलन के समापन तक अवश्य मिल जाएंगे.




























जय हिंद....! 




प्रबल प्रताप सिंह

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

        एड्स 
जानकारी ही बचाव है...!












आज विश्व एड्स दिवस है. देश और विदेश में इस भष्मासुर से जंग जारी है. इस भष्मासुर की बदौलत कईयों की गरीबी दूर हो चुकी है. ये अलग बात है कि इस दानव से लाखों लोग हर साल भष्म  हो रहे हैं. इससे पीछा छुड़ाने के लिए विश्व बैंक करोड़ों का अनुदान तमाम गरीब मुल्कों और वहां कार्यरत स्वयंसेवी संस्थाओं को देता है. जैसा कि हम सभी जानते है कि ये संस्थाएं इसे नष्ट करने के लिए अपनी सम्पूर्ण अजगरी ताकत लगा देती हैं. परिणामस्वरुप एड्स दानव से महादानव का रूप ले चुका है. भष्म होने का नाम नहीं लेता. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी भयावहता का अंदाजा लगाते हुए इसे दुनिया की चार सबसे बड़ी बीमारियों में शुमार किया है. इससे बचने के लिए एक नारा दिया ' जानकारी ही बचाव है ' आइए जानते है कि ये एड्स है क्या बला..............

एचआईवी  क्या है - ह्यूमन इम्यूनोडिफीशिएंसी वायरस. मानव की रोग प्रतिरोधक शक्ति को कम करने वाला यह विषाणु एक रेट्रोवायरस है जो मानव की रोग प्रतिरोधक प्रणाली की कोशिकाओं   (मुख्यतः सीडी ४ पॉजिटिव टी) को संक्रमित कर उनके काम करने की क्षमता को नष्ट या क्षतिग्रस्त कर देता है.

एड्स क्या है
- एक्वायर्ड इम्यूनो डिफीशिएंसी सिंड्रोम. यह रोग प्रतिरोधक प्रणाली की कमी से जुड़े लक्षणों और संक्रमणों के समूह को प्रकट करता है. 

लक्षण

संक्रमण के तत्काल बाद कोई लक्षण नजर आता है. एक सप्ताह से तीन महीने के बीच संक्रमित व्यक्ति में गिल्टी वाला बुखार, जोड़ों में दर्द, शरीर पर चकत्ते जैसे लक्षण दिखाई डे सकते हैं. ऐसा होने पर चिकित्सक कि सलाह लें.





















संक्रमण के प्रमुख कारण

१. असुरक्षित यौन संबंध से.
२. संक्रमित रक्त चढ़ाने से.
३. संर्मित सीरिंज या सुई के उपयोग से.
४. संक्रमित माँ से बच्चे में.


इनसे नहीं होता एड्स


१. संक्रमित व्यक्ति से हाथ मिलाने, उसके साथ सफ़र करने, एक ही प्लेट से खाना खाने, एक ही गिलास से पानी पीने, उसके साथ खेलने, उसे गले लगाने, चूमने से नहीं फैलता.
२. मच्छर या एनी कीड़े - मकोड़े इस विषाणु को नहीं फैलाते और न ही यह हवा या पानी के माध्यम से फैलता है.



सावधानियां 


१. नुकीले उपकरणों का सावधानीपूर्वक उपयोग और निबटान.
२. सभी कार्यों के बाद साबुन से हाथ धोना.
३. रक्त या अन्य शारीरिक तरलों के संपर्क में आने पर दस्ताने, गाउन, एप्रन, मास्क, गॉगल्स जैसे बचावकारी उपकरणों का उपयोग.
४. रक्त और शारीरिक तरलों से संदूषित कचरे का सुरक्षित निबटान.
५. उपकरणों और संदूषित औजारों को उपयुक्त तरीके से विसंक्रमित करना.


बजट

७८० अरब रुपए २००८ में इस बीमारी से लड़ाई के लिए सभी स्रोतों से प्राप्त अनुमानित धन.
१२५० अरब रुपए यूएन एड्स द्वारा २०१० में इस बीमारी के खिलाफ़ लड़ाई में जारी धन का अनुमान.
चालू वित्त वर्ष में ९९३ करोड़ का बजट ( भारत का ). पिछले वर्ष भी इतना ही था.

देश में



२५ लाख राष्ट्रीय एड्स नियत्रण संगठन ( नाको ) के अनुमान के मुताबिक एचआईवी से संक्रमित वयस्कों की अनुमानित संख्या ०.३६ फीसदी संक्रमण दर.
=  उत्तर के अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों की तुलना में दक्षिण के समृद्ध प्रदेशों में संक्रमण दर अधिक.

परदेश



३.३४ करोड़ एचआईवी से संक्रमित .
=  महामारी बनने के बाद से अब तक कुल ६ करोड़ लोग संक्रमित और २.५ करोड़ लोगों की मौत.
=  १५ साल से कम उम्र के २१ लाख बच्चों में एड्स २००८ में ४.३ लाख नवजात एचआईवी से संक्रमित.
=  एचआईवी से संक्रमित एक तिहाई लोग टीबी से पीड़ित है.

एचआईवी  संक्रमण का जरिया ( आंकड़े २००७ के )








यौन - ८७.४ %
पैरीनेटल संचरण - ४.७%
खून और खून के उत्पादों के कारण - १.७ %
इंजेक्शन के द्वारा - १.८ %
अन्य - ४.४ ५

भारत में उपचाराधीन एड्स रोगियों की संख्या

जनवरी २००५ - ४२००
सितम्बर २००५ - १२६३३
जनवरी २००६ - २४४९०
सितम्बर २००६ - ४१०००
जनवरी २००७ - ५६९३३
सितम्बर २००७ - १०५६२२
सेक्स वर्करों में एचआईवी का संक्रमण दर

 २००३ - १०.३ %
२००६ - ४.९ %


रेड रिबन एक्सप्रेस की शुरुआत १९९१ में हुई. भारत में रेड रिबन एक्सप्रेस १ दिसम्बर २००७ में शुरू हुई. प्रथम चरण में १४० जिले तक रेड रिबन एक्सप्रेस गई है. ६० लाख लोगों ने इससे मुलाकात की. ५० % एचआईवी  संक्रमण १५ से २४ वर्ष की अवस्था के युवाओं में पाए गए.
एड्स रोगियों का आयु विभाजन

०-१४ वर्ष - ५.६ %
१५-२९ वर्ष - २७.९ %
३०-३९ वर्ष - ५८.६ %
४०-४९ वर्ष - ७.७ %
जिनका खुलासा नहीं - ०.२ %
एड्स कुछ तथ्य 


१. एचआईवी से सर्वाधिक प्रभावित कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्यों में हालात काफी सुधरे हैं. २००० से २००७ के बीच १५ से २४ वर्ष की युवतियों में एचआईवी का संक्रमण ५४% तक घटा है.
२.   विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ ) ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन ( नाको) की कोशिशो की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज भारतीय राज्यों की ८० फीसदी सेक्स वर्करों तक अपेक्षित जानकारी है.
३. गत आठ सालों में दुनिया में एचआईवी  की संक्रमण दर में १७% की कमी आई है. एड्स से मरने वाले रोगियों की संख्या में इस दौरान १०% की कमी आई है.
४. २००७ में दुनिया में एड्स पीड़ितों की संख्या ३.३ करोड़ थी, जो २००८ में ३.३४ करोड़ हो गई.
५. दुनियाभर में अब तक ६ करोड़ लोग एचआईवी  संक्रमित हो चुके हैं. अब तक एड्स से २.५ करोड़ लोगों की मौत हुई है.
६. सब सहारा अफ़्रीकी क्षेत्र एड्स का सर्वाधिक प्रभावित इलाका है. २००७ में कुल एड्स पीड़ितों में ५९% इसी क्षेत्र के थे.
७. एड्स के नए मामलों में आधे लोग २५ वर्ष से कम उम्र के है.
८. २००७ के आंकड़ों के अनुसार देश में एड्स रोगियों की संख्या २३ लाख है.
९. देश में लगभग २३ लाख वेश्याएं हैं तथा इनके बच्चों की संख्या ५१ लाख है.
१०. विश्व में लगभग १० लाख युवा लड़कियों को वेश्यावृत्ति में ढकेला जाता है. देश में साढ़े २५ हजार युवा लडकियां प्रतिवर्ष वेश्यावृत्ति के लिए ढकेली जाती हैं.
११. देश में १९८२ में एड्स का पहला मामला सामने आया था.
१२. २००५ में विश्व बैंक समर्थित एचआईवी  एड्स से जुड़ी २० करोड़ डॉलर की भारतीय परियोजना में भ्रष्टाचार की बात सामने आई. धोखाधड़ी का आरोप दो फार्मास्युटिकल कम्पनियों पर लगा.

एड्स का सफ़रनामा 





१. १९७८ -   अमेरिका और स्वीडन के दो होमोसेक्सुअल लोगों में पहली बार एड्स के लक्षण पाए गए. हालांकि बीमारी को एड्स का नाम बाद में दिया गया.
२. १९८१ - एड्स के कई मामले सामने आए. न्यूयार्क के आठ होमोसेक्सुअल युवकों में त्वचा कैंसर ' कोपसी सरकोमा ' का मामला सामने आया. इसी तरह लॉस एंजेल्स के पांच युवकों  में न्यूमोनिया का ऐसा लक्षण दिखा जो सामान्य नहीं था. इन दोनों मामलों में पाया गया कि इसका कारण असामान्य है और कहीं न कहीं इसका संबंध यौन क्रियाओं से है. बीमारी के लक्षण से यह साफ हुआ कि यह प्रतिरक्षा तंत्र का क्षय कर देता है.
३. १९८२ - जुलाई माह में इस बीमारी को " एक्वायर्ड इम्यूनो डिफीशिएंसी सिंड्रोम "( एड्स ) कस नाम मिला.
४. दिसम्बर माह में ढेड़ साल के एक बच्चे की मौत इस बीमारी के कारण हुई. इस बच्चे को गलती से एड्स रोगी का रक्त चढ़ा दिया था. यह रक्त द्वारा एड्स रोग फैलाने का यह पहला मामला था. इस घटना से पहले एड्स सिर्फ होमोसेक्सुअल कम्यूनिटी की बीमारी माना जाता था.
५. १९८३ - यूरोप में एक अफ्रीकन में इस बीमारी के लक्षण देखे गए. इस मामले से यह साफ हुआ कि हेट्रोसेक्सुअल  लोगों में भी यह बीमारी फ़ैल सकती है.
६. इसी वर्ष पाश्चर इंस्टीट्यूट, फ़्रांस के वैज्ञानिकों को श्वेत रक्त कणिकाओं को प्रभावित करने वाले वायरस को आइसोलेटेड करने में सफलता पाई. इस वायरस को लिम्फएडेनोपैथी एसोसिएट वायरस या एलएवी नाम दिया गया.
७. इसी साल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को लेकर विश्वस्तरीय निगरानी शुरू की. केवल अमेरिका में १९८३ तक बीमारी से संक्रमित ३०६४ मामले सामने आए.
८. १९८५ - एड्स पर पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया और बीमारी के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जताई गई.
९ -  एशिया में चीन में पहला मामला एड्स का सामने आया.
१०.  हॉलीवुड के पॉपुलर अभिनेता रॉक हडसन एड्स के शिकार हुए.
११.  १९८६ - एड्स संचारित करने वाले कारक को पहली बार एचआईवी  के नाम से पुकारा गया.
१२. १९८७ - एड्स रोधी दवा एंटी एचआईवी  ड्रग एजिडोवुडीन को प्रयोगों के बाद पहली बार स्वीकृत मिली. यह दवा  एड्स  के फैलाव की रफ्तार को मंद करने में मानी गई लेकिन  बाद में इसे दावे के अनुरूप प्रभावी नहीं पायागया.
१३. अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने एड्स को विश्व का दुश्मन नम्बर एक घोषित किया. इसी साल जाम्बिया के राष्ट्रपति ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कि उनके बेटे की मौत एड्स के कारण हुई.
१४. १९९१ - रेड रिबन को अंतर्राष्ट्रीय चिन्ह घोषित किया गया. इसी चिन्ह का प्रयोग एड्स जारुकता अभियान के लिए किया जाना था.
१५. क्लीन रॉक समूह के प्रमुख सिंगर फ्रैडी मर्कल की मौत इस बीमारी के कारण हुई.
१६. इसी साल अमेरिका के बास्केट बाल के स्टार खिलाड़ी इरविन मैजिक जॉन्सन ने अपने एड्स पीड़ित होने की घोषणा की.
१७. १९९२ - टेनिस के प्रसिद्ध खिलाड़ी आर्थर एश ने अपने एड्स पीड़ित होने की बात सार्वजनिक की. उन्होंने बताया कि इसके विषाणु सात साल पहले रक्त स्थानान्तरण के दौरान उनके शरीर तकपहुंचे.
१८. १९९३ - यह पाया गया कि एड्स रोधी दवा का असर उन मरीजों पर बिलकुल कारगर नहीं हो रहा जो इसका लम्बे समय तक प्रयोग कर रहे हैं. इसका कारण एड्स विषाणुओं का प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेनाथा.
१९. १९९४ - अमेरिकी सरकार ने पहली बार कंडोम के इस्तेमाल के प्रमोशन के लिए अभियान चलाया. इस अभियान को काफी सफलता भी मिली.
२०. १९९५ - अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने ' प्रेसीडेंटल एडवायजरी काउन्सिल ऑन एचआईवी  एड्स ' का गठन किया.
२१. डब्ल्यूएचओ ने बताया कि विश्व में १० लाख से अधिक लोग एचआईवी से प्रभावित हैं.
२२. इसी महीने विश्व प्रसिद्ध तैराक ग्रेग लागनिस जिसने ओलम्पिक में गोल्ड मेडल भी जीता था, अपने एड्स पीड़ित होने की पुष्टि की.
२३. १९९६ - पाया गया कि एचआईवी पीड़ित ९०% लोग तीसरी दुनिया से ताल्लुक रखते हैं.
२४. १९९९ - घोषणा की गई कि एड्स विश्व की चौथी सबसे बड़ी बीमारी है. यह भी बताया गया कि अब तक इस बीमारी से १४ लाख लोगों की मौत हुई. ३३ लाख लोगों के प्रभावित होने की भी बात कही गई.
२५. २००१ - भारतीय कम्पनी सिप्ला ने एड्स की सस्ती दवा बाज़ार में उतारी.
२६. २००३ - एड्स को लेकर यह साल सबसे भयानक सिद्ध हुआ. केवल इस साल एड्स के कारण ३ लाख से अधिक लोग मारे गए. इसी साल वैश्विक तौर पर यह महामारी घोषित कियागया.
२७. २००५ - विश्वभर में एड्स को पीड़ितों की संख्या ४० लाख से अधिक हुई.
२८. २००६ - इस साल कई नई दवाएं बाज़ार में उतारी गईं. डब्ल्यूएचओ ने बताया कि जागरूकता बढ़ने के कारण एचआईवी पीड़ितों की संख्या में कमी आईहै.
२९. २००९ - एड्स से मरने वालों की संख्या २ लाख १० हजार हुई. पाया गया कि तमाम उपायों के बावजूद ऐसे बहुत सारे लोग हैं जो एचआईवी से पीड़ित होकर भी अपनी बीमारी से अनजान हैं.
                                                     ( स्रोत - हस्तक्षेप, राष्ट्रीय सहारा, १-१२-०९ )
अंत में भैया सौ बात कि एक बात एड्स मतलब जानकारी ही बचाव है......!!


















प्रबल प्रताप सिंह

सोमवार, 30 नवंबर 2009

धैर्य 









एक आदमी अपनी जमा पूँजी से नया ट्रक खरीद लाया. उसके तीन साल के ने खेल- खेल में चमचमाते हुए ट्रक पर हथौड़ी से चोट कर दी. वह आदमी गुस्से में दौड़ता हुआ उसके पास आया और सजा देने के लिए उसने अपने बेटे के हाथ पर हथौड़ा मार दिया. बच्चे के हाथ से बह निकले खून से अचानक उसे बेटे को लगी चोट का अहसास हुआ और वह बच्चे को लेकर भागता हुआ अस्पताल पहुंचा. डाक्टरों ने बच्चे की हड्डी का इलाज करने की बहुत कोशिश की, लेकिन अंत में उन्हें उस लड़के के हाथ की अंगुलियाँ काटनी पड़ी.

लड़के को जब ऑपरेशन के बाद होश आया और उसने अपने हाथों पर बंधी पट्टी देखी तो पिता से बोला ' पापा, आपका ट्रक खराब करने के लिए , मुझे माफ़ कर दीजिए' फिर उसने बड़ी मासूमियत से पुछा ' लेकिन मेरी अंगुलियाँ वापस कब तक बढ़ जाएंगी ?' बेटे के इस प्रश्न का जवाब दिए बिना पिता घर गया और उसने आत्महत्या कर ली.
                                                  
(अहा! ज़िन्दगी- संकलन से)
--
शुभेच्छु

प्रबल प्रताप सिंह

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009










स्वीकार






सत्य और असत्य के बीच इतना बड़ा स्पेस होता है कि आप अपना सत्य खुद तय कर सकते हैं. इस बारे में एक लतीफा सुनिए. एक आदमी मनोचिकित्सक के पास गया और कहा कि मेरा इलाज कीजिए, नहीं तो मेरी ज़िन्दगी तबाह हो जाएगी. मनोचिकित्सक ने पुछा- आपको क्या तकलीफ है ? आगंतुक ने कहा- मुझे बहुत तगड़ा इनफीरियरिटी कॉम्पलेक्स है. मनोचिकित्सक बहुत देर तक उससे उसके बारे में तमाम जानकारियां लेता रहा. फिर बोला- मैंने जांच लिया है. आपको वास्तव में कोई कॉम्पलेक्स नहीं है. आप इनफीरियर हैं ही.अगर आप इस सच्चाई को स्वीकार कर लें, तो आपकी सभी परेशानियां खत्म हो जाएंगी और आप बेहतर जीवन बिता सकेंगे.
आप क्या सोचते हैं, उस आदमी ने मनोचिकित्सक की सलाह मान ली होगी ? मूर्ख अगर यह स्वीकार करने लगें कि वे मूर्ख हैं और बुद्धिमान अगर यह स्वीकार करने लगें कि एकमात्र बुद्धिमान वे ही नहीं हैं, तो हम कितनी नाहक वेदनाओं से बच जाएं. यह और बात है कि तब अनेक नई वेदनाएं गले पड़ जाएंगी. मसलन बड़ा मूर्ख इस फ़िक्र से परेशान रहेगा कि अनेक लोग मुझसे कम मूर्ख है. इसी तरह कम बुद्धिमान ज्यादा बुद्धिमान से रश्क करने लगेगा. सत्य के साथ यही मुश्किल है.
                                                                     (अहा! ज़िन्दगी- संकलन से) 


प्रबल प्रताप सिंह

गुरुवार, 26 नवंबर 2009





26/11 के बहाने








एक कहावत है कि छोटी सी चींटी हाथी जैसे विशालकाय प्राणी के सूंड में घुस जाए तो उसे धराशायी कर देती है. एक साल पहले आज की तारीख में १० चींटियों (प्रशिक्षित आतंकवादियों) ने भारत के भीमकाय सूंड (मुंबई) में घुसकर उसे धराशायी कर दिया. सूंड में ऐसे घुसे कि मुंबई शहर में ६० घंटे तक मौत का तांडव होता रहा. इस घटना ने विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी.









आज हम २६/११ की बरसी मना रहे हैं. मुंबई हमले में मारे गए निर्दोषों और शहीद पुलिस अधिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. घटना के एक साल गुजर जाने के बाद भी हमारे सामने एक यक्ष सवाल मुंह बाए खड़ा है. क्या हम अब सुरक्षित हैं ? क्या भारत अधिक  सुरक्षित हॉट गया है ? चलनी के छेदों वालों हमारे समुद्री तट क्या सुरक्षित हो गए हैं ? क्या हमारा ख़ुफ़िया तंत्र पहले से ज्यादा दुरुस्त है ? क्या आम नागरिक की रक्षा करने के लिए तैनात पुलिस वाले आतंकी हमले से निपटने के लिए बेहतर प्रशिक्षित और बेहतर हथियारों से लैस हैं ? बड़े सुरक्षा बलों में क्या सुधार किया गया ? सेना और पुलिस विभागों में खाली पड़े पदों को भरा गया ?
समुन्दर के रास्ते से आतंक मचाने में निपुण और दुस्साहस से लबरेज १० आतंकियों की एक टोली ने ६० घंटे तक भारत की व्यापारिक राजधानी को बंधक बनाए रखा. २००१ में संसद पर हुए हमले के बाद यह आतंकवाद की सबसे बड़ी वारदात थी. इस वारदात ने साबित कर दिया कि ११५ करोड़ की आबादी वाले भारत की सुरक्षा व्यवस्था और खुफ़िया तंत्र में कितने छेद है. यह हमारी निजी सोच नहीं है. यह प्रत्येक आम भारतीय की सोच है. यह नकारापन खुफ़िया सूचना की, शहर पुलिस का ढुलमुलपन, राजनेताओं की हिचकिचाहट और व्यवस्थागत नाकामी को सबने स्पष्ट महसूस किया.













राजनीतिक विचार से बंटा हुआ भारत शायद आज भी यह जानने में अक्षम है कि अपने  दुश्मन का क्या करना चाहिए. आतंकी जख्मों से लथपथ अपनी राष्ट्रवादी आत्मा पर किस तरह का मरहम लगाना चाहिए. न्याय प्रणाली की लचर कार्यवाही का फायदा आतंकी और उनके आका उठा रहे हैं. जिसका खामियाजा आम लोग  अपनी जान गवांकर दे रहे हैं. आंतरिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने बजाय हमारे नेता जुबानी धींगामुस्ती में मशगूल है. इन राजनेताओं की कार्यप्रणाली कहीं प्रत्येक भारतवासी को कानून (अपनी सुरक्षा के लिए) को अपने हाथों में लेने को बाध्य न कर दे ?

                                  शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
                                वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा..........!!






















एक साल में क्या हुआ

१. चार शहरों में एनएसजी हब बनाए गए.
२. एनएसजी के लिए मानव शक्ति बढ़ा दी गयी.
३. आपात स्थिति में बल को नागरिक हवाई जहाज़ की मांग करने की इजाज़त दी गयी.
४. मैक के माध्यम से खुफ़िया जानकारी बांटने के तंत्र को सक्रिय किया गया.
५. खुफ़िया एजेंसियां रोज मीटिंग करती हैं.
६. विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय बेहतर हुआ.
७. आधे राज्य पुलिस सुधारों को लागू कर रहे है, जबकि दूसरे ऐसा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को आड़े ले आते हैं.
८. केंद्र अधिक बटालियन तैयार कर रहा है और अधिक आईपीएस पुलिस अधिकारियों की भारती हो रही है.
९. आधुनिकीकरण राशि को कुछ राज्य कुशलतापूर्वक खर्च कर रहे हैं.
१०. आठ क्विक रिएक्शन टीमों का गठन हो चुका है.
११. मुंबई पुलिस ने अपने बजट, हथियारों और वाहनों में वृद्धि की है(फ़ोर्स वन का गठन).
१२. एटीएस आतंक से जुड़े सारे मामलों की पड़ताल करेगा.
१३. कसाब के खिलाफ़ ८६ आरोप तय किए गए, जिनमें देश के खिलाफ़ युद्ध छेड़ने के लिए सबसे कड़ी सज़ा हो सकती है.
१४. अब तक १५४ गवाहों से पूछताछ हो चुकी है.
१५. पैसे के अवैध हस्तांतरण निरोधक क़ानून(संशोधन) पारित हो गया है.
१६. आरबीआई ने सारे एनबीएफसी को ग्राहकों का रिकॉर्ड रखने की सलाह दी है.
१७. सेबी ने स्टॉक एक्सचेंज से आतंक को पैसा देने वाली संयुक्त राष्ट्र की सूचीबद्ध संस्थानों पर नजर रखने के निर्देश दी गए हैं.
१८. कोस्ट गार्ड को अधिक निगरानी जहाज़ और विमान स्वीकृत किए गए.
१९. कोस्ट गार्ड के लिए विमानों की संख्या बढ़ाई गई.
२०. कर्मचारियों में ३० फीसदी वृद्धि को मंजूरी दी गई.
२१. कश्मीर घाटी में सुरक्षा और निगरानी बढ़ाई गई.
२२. यह माना गया की कश्मीर एक राजनीतिक मुद्दा है.
२३. संवाद प्रक्रिया की शुरुआत.
२४. पाकिस्तान पर दबाव बनाने के बाद उसने माना कि उसकी जमीन से हमले की योजना बनी और उसे अंजाम दिया गया.
२५. पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय वार्ताकारों को शामिल किया गया.
२६. दस्तावेज सौंपने की कूटनीति से पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा.

एक साल में क्या नहीं हुआ

१. पाकिस्तान को २६/११ मुकदमे में तेजी के लिए मजबूर नहीं कर पाए.
२. हफीज़ सईद जैसी बड़ी मछलियां अब भी आज़ाद घूम रही हैं.
३. आतंक पर लगाम कसने की प्रतिबद्धता नहीं है.
४. असैनिक इलाकों से सेना हटाने और दंडमुक्ति कानूनों को हटाने जैसे भरोसा बढ़ाने वाले कदम नहीं उठाए गए.
५. बुनियादी संरचना विकास.
६. संवाद प्रक्रिया का संस्थानीकरण.
७. घरेलू जहाज़ निर्माण में तेजी नहीं आ पाई, एक निगरानी जहाज़ के निर्माण में अब भी पांच साल लग जाते है.
८. तटीय शहरों में उतरने के सारे स्थानों का नियमन अभी नहीं हो पाया है.
९. मरीन पुलिस को सीमा शुल्क विभाग द्वारा इस्तेमाल स्पीडपोस्ट के इस्तेमाल की इजाज़त नहीं.
१०. आरबीआई और सेबी के वित्तीय दिशानिर्देशों को लागू करने में ढिलाई.
११. पैसे के अवैध हस्तांतरण और 'हवाला' मामले पर राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी, इसमें कई भ्रष्ट लोग संलिप्त हैं.
१२. मुकदमा बहुत तेजी से नहीं चल रहा है(कसाब का).
१३. अभी कुछ प्रत्यक्षदर्शियों से पूछताछ करनी है.
१४. फैसले में दो महीने का समय लग सकता है.
१५. तटीय स्थानों का अब तक गठन नहीं हो पाया है.
१६. एनएसजी की तर्ज पर ही फ़ोर्स वन का गठन किया गया लेकिन अब तक इसे ठिकाना नहीं मिल पाया है.
१७. निगरानी नौकाओं के किए कर्मियों की भर्ती के नियम अभी तैयार नहीं हुए हैं.
१८. सभी के लिए प्रशिक्षण में सुधार नहीं हुआ.
१९. मानव शक्ति में वृद्धि अब भी एक भारी खामी है.
२०. आईबी में अधिकारियों की संख्या नहीं बढ़ी.
२१. तेजी से डाटा ट्रांसफर के लिए संयोजित टेक्निकल सुविधाएं हासिल नहीं की गयी.
२२. तट सुरक्षा बलों को राज्यों के मैक से अभी नहीं जोड़ा गया है.
२३. नाईट विजन डिवाइस और वेपन साइट्स जैसे नये और आतंक का मुकाबला करने वाले उपकरणों की खरीद नहीं हुई.
२४. ट्रुपर्स को अपनी रक्षा के लिए हल्की बुलेटप्रूफ जैकेट और हेल्मेट उपलब्ध नहीं कराए गए.
२५. शहरों के भीतर फौरी तैयारी के लिए हेलीकॉपटरों की व्यवस्था नहीं की गई.
                                                                  (स्रोत - २ दिसम्बर, २००९. इंडिया टुडे)

 
सपनों की नगरी मुंबई जो कभी सोती नहीं. कहते हैं कि यहाँ रहने वाला हर मुम्बईया का जीवन सपने देखना है. शायद मुम्बईवासी आज एक साल पुराने स्तब्ध कर देने वाली दुर्घटना के सपनों को भुला पायेंगे ?
एक साल कब बीत गया पता ही नहीं चला. शायद इसलिए कि हम ऐसी आतंकी वारदातों को सहने के आदी हो चुके हैं. आए दिन भारत में ऐसी वारदातें होती रहती हैं. निर्दोषों का खून बहता है. पुलिस आती है. जांच करती है. नेता भाषणबाजी करते हैं. सरकार मुआवजा देने कि घोषणा करती है. किसी को मुआवजा मिला कि नहीं इसकी जिम्मेदारी सरकार कि नहीं. मीडिया वाले ख़बर दिखाते और छापते हैं. सब कुछ अपने ढर्रे पर चलने लगता है. मुंबई भी अपने ढर्रे पर चल रही है. पुलिस भी अपने ढर्रे पर चल रही है. सरकार भी अपने ढर्रे पर चल रही है. मीडिया भी अपने ढर्रे पर चल रहा है. बीस साल से हम आतंकियों और आतंकवाद से निपटने का तरीका तलाश रहे हैं. २६/११ की हम ९/११ से तुलना करते हैं. ९/११ के बाद अमेरिका ने तो आतंकियों और आतंकवाद से निपटने का तरीका ढूंढ़ निकाला. लेकिन २६/११ के एक वर्ष बाद भी हम किंकर्तव्यविमूढ़ बने हुए है. क्योंकि हम सहनशील हैं, विनम्र हैं, अहिंसा के पुजारी हैं. हम ईंट का जवाब पत्थर से देना नहीं जानते हैं. हम नारों और वादों के देश में रहते हैं. इन्हीं नारों और वादों पर न जाने कितनी निर्दोष जानें जा चुकी हैं और न जाने कितनी जाने अभी जाएंगी. फिर कोई २६/११ होगा. निर्दोष मरेंगे. पुलिस आएगी. जांच करेगी. नेता भाषण देंगे. सरकार मुआवजा बांटेगी. मीडिया ख़बर छापेगा और दिखायेगा. आतंक विरोधी नारे लगेंगे. कैंडील मार्च होगा. वादे किए और कराए जाएंगे. २६/११ के बहाने हम फिर थोड़ा देशप्रेमी हो जाएंगे.





यह कब तक चलता रहेगा..................???????

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.....











प्रबल प्रताप सिंह