शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

नव वर्ष मुबारक....!










































चटकती कलियों को
किलकती गलियों को
नव वर्ष मुबारक....!

नील गगन के बादल को
ममता के आँचल को
नव वर्ष मुबारक....!


पूरब की पुरवाई को
सागर की गहराई को
नव वर्ष मुबारक....!


अनेकता के साथों को
एकता के हाथों को
नव वर्ष मुबारक....!

पतझर की बहार को
माटी के कुम्हार को
नव वर्ष मुबारक....!

बचपन की बातों को
बिछुड़े हुए नातों को
नव वर्ष मुबारक....!

झुकती हुई आँखों को
सूखी हुई शाखों को
नव वर्ष मुबारक....!

पूर्वजों की थाती को
शहीदों की छाती को
नव वर्ष मुबारक....!

छप्पर की बाती को
चींटी-बाराती को
नव वर्ष मुबारक....!

उठती डोली को
पपिहा की बोली को
नव वर्ष मुबारक....!
 
शहर की अंगड़ाई को
गाँव की बिवाई को
नव वर्ष मुबारक....!

बुजुर्गों के सानिध्य को
भारत के भविष्य को
नव वर्ष मुबारक....!

अलाव की रातों को
बसंत की यादों को
नव वर्ष मुबारक....!

गुजरती राहों को
बिचुद्ती बाँहों को
नव वर्ष मुबारक....!

गाँव की पगडण्डी को
सब्जी की मंडी को
नव वर्ष मुबारक....!

खेतों की फसलों को
चिड़ियों के घोसलों को
नव वर्ष मुबारक....!
 
रोते नादानों को
उड़ते अरमानों को
नव वर्ष मुबारक....!

निकलते दिनकर को
स्थिर समंदर को
नव वर्ष मुबारक....!

कोयले की खानों को
मुर्गे की बांगो को
नव वर्ष मुबारक....!

नदिया की कल कल को
गोरी की छम छम को
नव वर्ष मुबारक....!

सरहद के जवानों को
खेत खलिहानों को
नव वर्ष मुबारक....!

जीवन दाता को
जग के विधाता को
नव वर्ष मुबारक....!


 







 
प्रबल प्रताप सिंह 

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

साल २००९ जा रहा.....!!









२१वीं सदी के आखिरी दशक की आखिरी शाम. ये साल बहुतों के लिए बहुत अच्छा रहा होगा तो बहुतों के लिए बहुत बुरा. कुछ लोगों के लिए ये साल मिलाजुला रहा होगा. सभी अपने - अपने तरीके से बीत रहे साल २००९ का मूल्यांकन कर रहे हैं. भारत का आम आदमी इस साल जिससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है उनमें क्रमशः महंगाई, मंदी, महामारी, बेरोज़गारी, अव्यवस्था आदि.
आज मैंने भी इस गुजर रहे साल का अपने तरीके से मूल्यांकन करने बैठा तो विचार गद्द की जगह पद्द के रूप में निकल पड़े. इन्हीं विचारों को आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ........
साल २००९ जा रहा है......!!


अमीरों को और अमीरी देकर
गरीबों को और ग़रीबी देकर
जन्मों से जलती जनता को 
महंगाई की ज्वाला देकर
साल २००९ जा रहा है.....

अपनों से दूरी बढ़ाकर
नाते, रिश्तेदारी छुड़ाकर
मोबाइल, इन्टरनेट का 
जुआरी बनाकर
अतिमहत्वकान्क्षाओं का 
व्यापारी बनाकर
ईर्ष्या, द्वेष, घृणा में 
अपनों की सुपारी दिलाकर
निर्दोषों, मासूमों, बेवाओं की 
चित्कार देकर
साल २००९ जा रहा.....


नेताओं की 
मनमानी देकर
झूठे-मूठे 
दानी देकर
अभिनेताओं की 
नादानी देकर
पुलिस प्रशासन की
नाकामी देकर
साल २००९ जा रहा.....


अंधियारा ताल ठोंककर
उजियारा सिकुड़ सिकुड़कर 
भ्रष्टाचार सीना चौड़ाकर
ईमानदार चिमुड़ चिमुड़कर
अर्थहीन सच्चाई देकर
बेमतलब हिनाई देकर
झूठी गवाही देकर
साल २००९ जा रहा.....

धरती के बाशिंदों को 
जीवन के साजिंदों को
ईश्वर के कारिंदों को
गगन के परिंदों को
प्रकृति के दरिंदों को
सूखा, भूखा और तबाही देकर
साल २००९ जा रहा.....

कुछ सवाल पैदाकर 
कुछ बवाल पैदाकर
हल नए ढूंढने को
पल नए ढूंढने को
कल नए गढ़ने को
पथ नए चढ़ने को
एक अनसुलझा सा काम देकर
साल २००९ जा रहा.....

प्रबल प्रताप सिंह



रविवार, 27 दिसंबर 2009

एक क़ुरान - ए - सुख़न का सफ़ा खुलता है......!!










" बल्लीमाराँ के मोहल्लों की वो पेचीदा दलीलों की - सी गलियाँ
सामने टाल के नुक्कड़ पे, बटेरों के क़सीदे
गुड़गुडाती हुई पान की पीकों में वह दाद, वह वाह - वा
चाँद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा - से कुछ टाट के परदे 
एक बकरी के मिमियाने की आवाज़ 
और धुंधलाई हुई शाम के बेनूर अँधेरे 
ऐसे दीवारों से मुंह जोड़ के चलते हैं यहाँ
चूड़ीवालान के कटोरे की ' बड़ी बी ' जैसे
अपनी बुझती हुई आँखों से दरवाज़े टटोले 
इसी बेनूर अँधेरी - सी गली क़ासिम से
एक तरतीब चरागों की शुरू होती है
एक क़ुरान - ए - सुख़न का सफ़ा खुलता है
' असद उल्लाह खाँ ग़ालिब ' का पता मिलता है". ( गुलज़ार )
आज से ठीक २१२ साल पहले २७ दिसम्बर १७९७ को अब्दुल्लाह बेग खाँ के घर मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म हुआ. उर्दू और फारसी ग़ज़ल के महान शायर मिर्ज़ा असद उल्लाह खाँ के बारे में पहले से ही बहुत कुछ कहा जा चुका है. बकौल अयोध्या प्रसाद गोयलीय, महाभारत और रामायण पढ़े बगैर जैसे हिन्दू धर्म पर कुछ नहीं बोला जा सकता, वैसे ही ग़ालिब का अध्ययन किए बगैर, बज़्मे - अदब में मुंह नहीं खोला जा सकता है. इसलिए दोस्तों ज्यादा वक्त जाया न करते हुए ग़ालिब के गुलशन - ए - ग़ज़ल से कुछ चुनिन्दा  ग़ज़ल - ए - गुल का लुत्फ़ उठाइए..........

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.
मगर लिखवाए कोई उसको ख़त तो हमसे लिखवाए
हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले.
मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का 
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले.
कहां मयखाने का दरवाज़ा ' ग़ालिब ' और कहां वाइज़ 
पर, इतना जानते हैं, कल वो जाता था कि हम निकले.

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए 
धोए गए हम ऐसे कि बस पाक हो गए.
इस रंग से उठाई कल उसने 'असद ' की लाश 
दुश्मन भी जिसको देख के गमनाक हो गए.

बाज़ीचए अतफ़ाल१ है दुनिया मेरे आगे 
होता है शबोरोज़ तमाशा मेरे आगे.
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे 
तू देख कि क्या रंग है तेरे मेरे आगे.
नफ़रत का गुमां गुज़रे है, मैं रश्क से गुज़रा 
क्योंकर कहूं लो नाम न उसका मेरे आगे.

नुक्ताचीं२ है गमे दिल उसको सुनाए न बने 
क्या बने बात जहां बात बनाए न बने.
गैर फिरता है लिए यूं तेरे ख़त को कि अगर 
कोई पूछे कि यह क्या है तो छुपाए न बने.
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है वो आतिश " ग़ालिब "
कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे.

नींद उसकी है, दिमाग़ उसका है, रातें उसकी हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिसके बाजू पर परीशाँ हो गईं 
रंज से खूंगर३ हुआ इन्सां तो मिट जाता है रंज 
मुश्किलें इतनी पड़ी मुझपर कि आसां हो गईं.

यह हम जो हिज्र में दीवारों दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामाबर को देखते है.
वो आएं घर में हमारे ख़ुदा की कुदरत है
कभी हम उनको कभी अपने घर को देखते हैं.


न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता तो क्या होता.
हुई मुद्दत कि " ग़ालिब " मर गया पर याद आता है
वह हर इक बात पर कहना कि ' यूं होता तो क्या होता '.


बस कि दुश्वार है हर काम का आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्सां होना.
हैफ़४ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत " ग़ालिब "
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गिरेबां होना.

इश्क़ से तबियत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई, दर्द बेदवा पाया.

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक.
आशिक़ी सब्र तलब५ और तमन्ना बेताब
हमने माना कि तगाफ़ुल६ न करोगे, लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम, तुनको ख़बर होने तक.


ज़ुल्मतकदे में मेरे, शबे गम का जोश है
इक शम्अ है दलीले सहर वो भी ख़मोश है.
दागे - फ़िराके७ सोह्बते - शब८ की जली हुई 
एक शम्अ रह गई है, सो वो भी ख़मोश है.
आते हैं ग़ैब९ से ये मज़ामी१० ख़्याल में
" ग़ालिब " सरीरे - खामा११, नवा - ए - सरोश१२ है.

फिर कुछ इस दिल को बेक़रारी है
सीना, जुया - ए - ज़ख्मे - कारी१३ है.
फिर जिगर खोदने लगा नाखून
आमदे फ़सले - लालाकारी१४ है.
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वाही ज़िन्दगी हमारी है.
फिर हुए हैं गवाहे - इश्क़ तलब१५ 
अश्कबारी का हुक्म जारी है.
बेखुदी, बेसबब नहीं " ग़ालिब "
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है.

ग़ैर ले महफ़िल में बोसे जाम के 
हम रहे यूं तश्नालब१६ पैग़ाम के.
दिल को आँखों ने फंसाया क्या मगर
ये भी हल्के१७ हैं तुम्हारे दाम१८ के.
इश्क़ ने " ग़ालिब " निकम्मा कर दिया 
वर्ना हम भी आदमी थे काम के.


उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है.
देखी पाते हैं उश्शाक१९ बुतों से क्या फैज़२०
इक बिरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है.
हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त, लेकिन
दिल के खुश रखने को " ग़ालिब " ये ख़्याल अच्छा है.


हर एक बात पे कहते हो तुम, कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़े गुफ़्तगू२१ क्या है.
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन२२
हमारे जेब को अब हाजते - रफ़ू २३  क्या है.
जला है जिस्म जहां, दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है.
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है.
रही न ताकते - गुफ़्तार२४ और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है.
१. बच्चों का खेल.

२. बाल की खाल निकालना.
३ . अभ्यस्त, आदि.

४ . अफ़सोस.

५ . धैर्यपूर्ण.

६ . उपेक्षा.

७ . वियोग की पीड़ा.

८ . रात का साथ.

९ . विषय-सन्दर्भ.

१० . परोक्ष रूप से.

११ . लिखने की ध्वनि.

१२ .शुभ सन्देश वाहक.

१३ . गहरे घाव को ढूँढने वाला.

१४ . पुष्प लहर का आना.

१५. प्रियवर की गवाही.

१६. प्यासे होंठ.

१७ . फंदा.

१८. जाल.

१९. प्रेमी.

२० . लाभ.

२१ . वार्तालाप का ढंग .

२२ . लिबास.

२३ . सिलना-पिरोना.

२४ . बात करने की शक्ति.

 


प्रबल प्रताप सिंह

 


शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009


ये अंधा क़ानून है....!!!!!!











ये अंधा कानून है, 
ये अंधा कानून है,
ये.... अंधा....कानून....है......
जी हां आप सही सोच रहे हैं. ये लाईनें न्याय की देवी जो आँख पर पट्टी बांधे हैं उनके लिए है. जो न्याय की देवी दूध का दूध और पानी का पानी वाला फैसला देने के जानी जाती है, उस देवी के दर से आज एक देवी के आबरू से खेलने वाले और उसे आत्महत्या के लिए जिम्मेदार डीजीपी को पर्याप्त सबूत होने के बावजूद ६ महीने की साधारण सज़ा और एक हज़ार रुपये जुर्माना लगाकर छोड़ दिया गया.

१९ साल 
१९ साल से रुचिका गिरहोत्रा काण्ड का केस चल रहा था. पर्याप्त सबूत होने के बावजूद केस की सुनवाई में इतना लम्बा समय दर्शाता है कि हमारी न्याय प्रणाली कितनी लाचा और लाचार हो चुकी है. इसी कारण ऊंचे रसूख वाले न्याय को अपने हाथ की कठपुतली बना रखे हैं.
हाईस्कूल में पढ़ रही रुचिका गिरहोत्रा के यौन उत्पीड़न के लिए दोषी पूर्व डीजीपी एसपी सिंह राठौर को कोर्ट ने १९ साल बाद ६ महीने की सामान्य सज़ा और एक हज़ार रुपये जुर्माना लगाकर छोड़ दिया ? इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. १४ वर्षीय टेनिस खिलाड़ी के साथ राज्य का सबसे बड़ा पुलिस अधिकारी बलात्कार का दोषी पाया गया ? रुचिका की आपबीती हलफ़नामे को कोर्ट ने नज़रंदाज़ कर दिया ? यह मुकदमा आम आदमी और खास आदमी के बीच न्यायसंगत था ? यह मुकदमा पुलिस के सचरित्र को दर्शाता है ?
बिना कारण रुचिका पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर स्कूल से निकाल दिया जाता है. भाई को पुलिस डराती है, धमकाती है, पीटती है, झूठे केस में फंसाती है. पूरा परिवार सदमें में जीने को अभिशप्त होता है. यह सब देखकर अल्पवयस्क रुचिका जहर खाकर अपनी जीवन लीला ख़त्म कर लेती है, ताकि उसके भाई और पिता को कोई परेशानी न हो. कब तक ऐसा होता रहेगा ? कब तक लड़कियों और महिलाओं को दूसरे की करनी भुगतनी पड़ेगी ? पुरुष प्रधान समाज में महिला सिर्फ उपभोग की वास्तु रह गई है ? " यत्र नार्यस्तु पूज्यते तत्र रमन्ते देवता ",  उक्ति वर्तमान में अपना अस्तित्व खो चुकी है ? घर - परिवार, देश और समाज संभालने वाली महिला की सुरक्षा किसी की नहीं है ? नारी को स्वतंत्रता का कोई अधिकार नहीं है ?
इन सवालों के जवाब हमें और आपको ही देने है. तभी एक स्वस्थ और विकसित समाज की कल्पना साकार होगी.
                                                                रुचिका मामले में गवाह बने उसकी सहेली के माता - पिता आनंद प्रकाश और श्रीमती मधु प्रकाश की जितनी तारीफ की जाए कम है. तमाम धमकियों के बावजूद पुलिस प्रशासन के प्रभाव में न आकर उन्होंने अपनी गवाही दी. जहां गवाह खरीदे और बेचे जाते हों, जहां गवाही को धनबल और बाहुबल से बदला जाता हो , वहां इन दोनों के हौसलों को सलाम...!!

न्याय की विडम्बना 
१. १४ साल की नाबालिग लड़की के साथ अधेड़ डीजीपी ने बलात्कार किया.
२. १९ साल बाद फैसला, वह भी न्यायसंगत नहीं.

३. तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख डलवाकर पूर्व डीजीपी राठौर ने अपने पद और पावर का बेहिसाब इस्तेमाल करते हुए  केस को १९ साल तक खींचा. पीड़िता के भाई और पिता को प्रताड़ित किया गया. गवाह बने आनंद प्रकाश और श्रीमती मधु प्रकाश को डराया, धमकाया गया.

४. बलात्कार पीड़िता ने आत्महत्या कर लिया.

५. पर्याप्त सबूत होने के बाद भी बलात्कारी राठौर को कोर्ट ने सामान्य सी सज़ा सुनाई.

६. कोर्ट का यह कहना बहुत ही हास्यास्पद है कि इतने लम्बे समय तक चले केस के कारण राठौर को लम्बी सज़ा नहीं दी जा सकती क्योंकि उनकी उम्र ६८ वर्ष हो चुकी है और हृदय की सर्जरी भी हो चुकी है.

७. १९ साल तक चले केस से जिस परिवार को जो मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और सामजिक नुकसान हुआ उसकी भरपाई कौन करेगा ?

८. महिलायें कब तक अन्याय का शिकार होती रहेंगी ?

९. आम आदमी न्याय से हमेशा वंचित रहा है. इस फैसले ने इस बात को और पुख्ता कर दिया है.

१०. यह फैसला लोकतंत्र की न्याय प्रणाली पर अनास्था और विद्रोह की भावना पैदा करता है.

११. किसी नाबालिग लड़की की आबरू  को धूमिल करना और उसे ख़ुदकुशी के कगार पर पहुंचाने वाले राठौर की इतनी कम सज़ा काफी है ?

१२. अप्रासंगिक हो चुके भारतीय कानून को बदल देना चाहिए.
जो सज़ा पूर्व डीजीपी राठौर को कोर्ट ने सुनाई है, उस सज़ा से कौन अपराधी खौफ खायेगा ? ऐसे अपराधी की सज़ा मौत से कम स्वीकार नहीं, ताकि कोई बेटी, बहिन , बहू, बीवी की अस्मत पर बुरी नज़र डालने से पहले उसके अंजाम को सोचकर थर्रा उठे.

एक सवाल जज से
"जिस जज ने यह फैसला सुनाया है 
क्या उसके बेटी, बहिन , बहू या बीवी
के साथ ऐसा हादसा हुआ होता तो वे 
यही फैसला सुनाते ??"

प्रबल प्रताप सिंह  










गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

तस्वीरें कुछ कहना चाहती हैं......!!































































































































































कश्मीर का कहवा कानपुर में


लज्जत कश्मीरी वाज़वान की लज्जतभरी दुकान


 






















ये है जनाब मोहम्मद साहबान साहब जो हमें कहवा का रसपान करने वाले है
















































ब्रजेन्द्र स्वरुप पार्क में चल रहा है हस्तशिल्प मेला, वहीँ पे मिलेगा आपको कश्मीरी कहवा.

















































कहवा को गौर से देखिए इसमें कश्मीर का केसर तैर रहा है.........
  
प्रबल प्रताप सिंह 



बुधवार, 9 दिसंबर 2009


ये तस्वीरें कुछ कहती हैं....!!



असंतुष्ट और धोखा खाए छात्र - छात्राओं के लिए नया बैच, आइए आप भी यहाँ धोखा खाइए.




आपको चैन न मिल रहा हो तो यहाँ आकर अपना चैन ठीक करा सकते हैं. जैसा कि ये फोटो कह रही है.


प्रबल प्रताप सिंह

सोमवार, 7 दिसंबर 2009

कोपेनहेगन क्या होपेनहेगन बन पाएगा....?


















































































दिन सोमवार तारीख सात है आज. डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में दुनियाभर  के पर्यावरण प्रेमियों का जमावड़ा लगा है. सात से अट्ठारह दिसम्बर तक जलवायु में बढ़ते जहर को कम करने की योजना - परियोजना पर चर्चा होगी. तापमान बढ़ने से पिघलते ग्लेशियरों का पानी समुद्र में समा रहा है. नतीजतन विश्व के तमाम देशों के कई तटीय शहरों के डूबने का खतरा पैदा हो गया है. कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं नियमित अंतराल पर सामने आ रहीं हैं. परिणामस्वरूप निर्दोष जिन्दगियां काल के गाल में समा रहींहैं. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा १९९२ में रियो दी जिनेरियो ( ब्राज़ील ) में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन की यह सबसे अद्यतन और महत्वपूर्ण कड़ी है. खबर है की जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से निपटने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता होना तय हुआ है. यह समझौता क्या होगा ? कैसा होगा ? पर्यावरण प्रदूषण को रोकने में कितना कारगर होगा ?  यह  सम्मेलन की समाप्ति के बाद पता चलेगा.





























जलवायु परिवर्तन मतलब लम्बी समयावधि के बाद तापक्रम में बदलाव. मनुष्य की विलासितापूर्ण जीवनशैली, उद्योग व वाहनों से निकलने वाला धुंआ और घटतेय वन्य क्षेत्र के कारण ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव बढ़ रहा है. इसमें कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और जलवाष्प शामिल हैं. कभी पृथ्वी की उत्पत्ति में सहायक रहीं ये गैसें अब इसके तापमान में खतरनाक तरीके से बढ़ोत्तरी कर रहीहैं.













 जलवायु परिवर्तन संधि पर १९२ देशों के हस्ताक्षर हैं. इन १९२ देशों और सरकारों के मुखिया के साथ - साथ तीस हजार लोगों को आमंत्रित  किया गया है. लेकिन पन्द्रह हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था होने के कारण कम लोगों के आने की सम्भावना है. इस सम्मलेन का एजेंडा यह है कि इसमें विकसित और औद्योगिक देश २०२० तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती लाने की घोषणा करें तथा विकासशील और गरीब देशों को इन खतरों से निपटने के लिए आर्थिक और तकनीकी मदद देने का ऐलान करें. बाद में इस समझौते को २०१० में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि का रूप दिया जाएगा, जिसके चलते इसके प्रावधानों को मानने की बाध्यता होगी.









भारत और चीन जैसे विकासशील देश का मानना है कि कार्बन उत्सर्जन में स्पष्ट कटौती की जिम्मेदारी औद्योगिक और धनाड्य देशों की है. क्योंकि काफी लम्बे अर्से से ये देश ज्यादा मात्रा में जलवायु को क्षति पहुंचा रहे हैं. इन देशों को पहले कटौती कर उदहारण पेश करें. गौरतलब है कि १९९७ में क्योटो प्रोटोकाल के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने पांच फीसदी कटौती को अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चौपट कर देने वाला बताया था.
कौन कितना कार्बन कटौती करेगा















भारत - २०५० तक - २० से २५%
चीन - २०२० तक - ४० से ४५%
अमेरिका - २०२० तक - १५%
ब्राज़ील - २०२० तक - ३६%
योरोप - २०२० तक - २० से ३०%
इंडोनेशिया - २०२० तक - २६%








विगत दिनों दिल्ली बेमौसम के कोहरे में घिरी दिनभर धुंध छाई रही. महाराष्ट्र और गुजरात में समुद्री तूफ़ान आने की खबर सुनाई दी. पूरे देश में इस साल सूखा पसर गया, अचानक बारिश शुरू हो गयी. मौसम की आख-मिचौली से आम आदमी हैरान और परेशान है. मौसम विज्ञानी भी इस तरह की अप्रत्याशित घटनाओं से चिंतित हैं. औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप धरती के वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड और एनी जहरीली गैसों की मात्रा दिनों-दिन बढती जा रही है, जिसके कारण धरती के तापमान में अप्रत्याशित तरीके से बढ़ोत्तरी हो रही है.
कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन देशों  में( प्रति व्यक्ति, टन में )












अमेरिका - २६.६
योरोपीय दश - ९.४०
जापान - १३
चीन - ४.७
रूस - १०
भारत - १
पर्यावरण को प्रदूषित करती गैसें( प्रतिशत में )
कार्बन डाई ऑक्साइड - ५८%
(जैविक ईंधन)
कार्बन डाई ऑक्साइड - १६%
(वन विनाश)
मीथेन - १७%
नाइट्रस ऑक्साइड - ८%
पर्यावरण परिवर्तन पर प्रधानमंत्री की सलाहकार परिषद् के बनने और पर्यावरण परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना यानी एनएपीसीसी के गठन के साथ यह स्पष्ट कर दिया कि भारत जलवायु परिवर्तन पर प्रगतिशील कदम उठाने को कमर कसके तैयार है. 









एनएपीसीसी के अध्यक्ष डा. राजेन्द्र पचौरी का मानना है कि कई बरसों की कोशिश के बाद जिस रास्ते की सहमति बनी है वह आगे जरूर बढ़ेगी.










कोपेनहेगन सम्मलेन के बारे में भारत के पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयराम रमेश का कहना है, " हमें बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए. ऐसा लगता है कि किसी अंतर्राष्ट्रीय समझौते पर पहुँचने से पहले लंबा समय लगेगा. यदि कोपेनहेगन में सिर्फ राजनीतिक लफ्फाजी होती है तो २०१० तक वेट करना पड़ेगा. " .
ग्रीनहाउस पैदा करने वाले क्षेत्र 





पावर स्टेशन ---------------------------------२१.३
औद्योगिक इकाई ----------------------१६.८
परिवहन ----------------------------१४.०
कृषि बाईप्रोडक्ट-----------------१२.५
जैविक ईंधन ---------------११.३
व्यपारिक स्रोत-----------१०.०
जल शोधन व कूड़ा निस्तारण ----३.४
बायोमास --------०








एक लीटर पेट्रोल के इस्तेमाल से पर्यावरण में चार किग्रा. कार्बन डाई ऑक्साइड पहुंचती है.
फिलिपीन्स लगातार तीन भीषण तूफानों से लगभग पूरी तरह तबाह हो चुका है. यही हाल ताइवान, वियतनाम और कम्बोडिया का भी है. फयां, अलनीनो, रीटा और कटरीना जैसे तूफानी जलजलों ने विश्व के कई देशों के शहरों को नुक्सान पहुंचाया है.











































 औद्योगिक युग (१७५०) के बाद ग्रीनहाउस गैसों में ९७% की वृद्धि हो गई है. ग्रीनहाउस गैसों के कारण धरती का तापमान १.५ डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. ग्लेशियर १.५ की प्रतिवर्ष की रफ्तार से पिघल रहे हैं.














धरती गर्म हो रही है. इसे बचाने के लिए कोपेनहेगन में चल रही बैठक से क्या होपेनहेगन का उद्देश्य कामयाब होगा? विकसित और औद्योगिक देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भरी कटौती करने को तैयार होंगे?  हम उम्मीद करते हैं की इन सवालों के जवाब हमें सम्मेलन के समापन तक अवश्य मिल जाएंगे.




























जय हिंद....! 




प्रबल प्रताप सिंह